रविवार, 22 दिसंबर 2013

Shyam Ki duniya

हर श्याम खुद को खुद से दुर् ले जाता हूँ,
हर श्याम एक अलग दुनिया बसाता हूँ,

अपने ही ढंग की इस दुनिया को ,
अपने रंगों से सजाता हूँ,
कहीं रंग इंसानियत का,
तोह कहीं रंग मोहब्बत का सजाता हूँ,

कहीं उची इमारतों के बिच हँसता बचपन बनाता हूँ,
हर मोड़ से जाती राहों को सदभाव से सजाता हूँ,
जहाँ एक धर्म इंसानियत हो ऐसा एक समाज बनाता हूँ,

हर पेट में रोटी ,
हर चहरे पे हंसी ऐसी एक दुनिया ख्वाबों में बसाता हूँ,
जहाँ लहलाते पेड़ हरे जंगल,
और आज़ाद घूमते पशु पक्षी हो,
जहाँ ना इन्सान हेवान,
और न जानवर परेशान,
हर किसी की खुशियों की दुनिया बसाता हूँ,

पर हर रात के ढलते ढलते,
अपनी बसाई इस दुनिया को फिर ,
छोड़ने को मजबूर हो जाता हूँ,
और दिन के चदते हुए पल के साथ फिर श्याम के इन्तेजार में खो जाता हूँ,

शनिवार, 2 नवंबर 2013

Itwaar ka khauf

इतवार का खौफ

एक जमाना हुआ करता था ,
हमें भी इतवार का शौक हुआ करता था ,
बचपन में स्कूल न जाने की मौज हुआ करती थी ,
कॉलेज में भी दोस्तों के साथ घुमने की धूम हुआ करती थी,

फिर दिन बदले वक्त बदला,
अब तोह इतवार आते ही घबराता हे दिल,
हर दरवाजे पे आती दस्तख से दर जाता हे दिल,
कभी जहाँ इंतजार करता था किसी के आने का,
अब दर लगता हे किसी के अजाने का,

कोई आयेगा तोह a/c पंखा चलाना होगा,
चाय बनाने को चूल्हा भी जलाना होगा,
और कहीं कोई रुक जाएगा खाने तक,
तोह चूल्हा और चलता जायेगा,
और हृदय पर दाल दलता जायेगा,

कहीं आलू कटेगा तोह दिल फुट फुट रोयेगा,
हर सिकती चपाती के साथ दिल धीरज खोएगा,
जो चलाना था हफ्ते भर वोह राशन एक दिन में खत्म होजायेगा,
जोह सालाद में काट दी प्याज दो,
तोह सब्र का बाँध टूट जायेगा,
और इस कवी ह्रदय में छुपा राक्षस जाग जायेगा,

बची रहे देश में मेहमान नवाजी की रित,
बनी रहे हर आने वाले के लिए हमारे प्रीत,
तोह यह महंगाई के राक्षस से हर आदमी को बचाना होगा,
सरकार को ठोस कदम कोई उठाना होगा,
खुद खाते हैं जो रोज माल पूरी,
26 रूपये में नहीं भरता किसी का पेट यह समझाना होगा,




शनिवार, 19 अक्तूबर 2013

life of a dream

as a kid when I was put to sleep,
sound of lovely ryhmes ring in my ear,
lovely dream cover my eyes ,
make me to wish this night should never die,

after so many year growing up
is not a fun,
even now before I go to sleep I listen lovely song but i stay in fear, 

now I don't want a dream to come in my eyes, 
as now dreams are no more lovely and kind,

now when I close my eyes,
I see chaos on every side,
I see people cutting my garden trees,
and beautiful birds asking me where should they flee,

in dreams
l see people running behind,
shouting and
asking for the religion I believe,

sometime it happens,
in the dark long nite,
I stood up to found that I am the only one alive,

dreams they are ,
my mind well knows,
but as a human race,
likes to dominate ,
my dreams can become real,
thats what my heart always know and fears..........

रविवार, 8 सितंबर 2013

kHABRAIN AUR AAM ADMI

अपने घर की आराम कुर्सी पर,
अख़बार के पन्ने को पलटता हूँ,
हर खबर के साथ बदलते देश की झलक देखता हूँ,
इससे विकास समझूँ या दमन येही सोचता हं,

कहीं भागती दौड़ती सड़कों की बातें हें,
तोह कही नित नयी उचाई छूती इमारतो की बातें,
इन्ही के बिच में कहीं हाथ फेलाए ,
टूटते बिखरते बचपन की बात हे,
उस्सी खबर के बीच एक रंग बिरंगा पोस्टर छापा हे,
शिक्षा पे सबका अधिकार हे सरकार ने बड़े गर्व से लिखा हे,

ख़बरों के मायाजाल में और पन्ने पलटता हूँ,
तोह गाँधी सुभास के देश की अलग झलकी देखता हूँ,
दंगों की ख़बरों छपी हैं,
राम रहीम के फेर में जनता लूट रही हे,
हम केवल शांति चाहते हैं ,
बड़े अक्षरों में नेता जी की यह टिप्पणी भी छपी हे,

कहीं देखता हूँ ,
दुर्गा लक्ष्मी के देश में ,
लुटती हुए अस्मतें चिलाती हैं,
कैसा यह समाज कौनसी मर्यादा हर एक चीज़ पे प्रश्न चिन्ह लगाती हे,
ऐसी अनगिनत खबरें हैं जिनको पढ़ दिल दहलता हे,
विकास के प्रारूपों पर एक प्रश्न चिन्ह जड़ता हे,

और यह अपने घरों की आराम कुर्सी पे बेठा,
अख़बार के पन्ने पलटता कोई और नहीं,
यह हर वोह व्यक्ति हें,
जोह हर इतवार ख़बरों को पढता हे ,
और फिर सरकार चोर हे के कसीदे पढता हे,
और फिर चैनल बदलके ठहाके मारकर हँसता हे,
अगर समाज बदलना हें तोह ,
आराम कुर्सी को छोड़ना होगा,
देश में फेली कुरीतियों से लड़ना होगा,
तभी हमारी आने वाली नस्लों का भारत महान होगा,
वरना यह देश फिर गुलामी की ज़न्ज्जीरों में जकड जायेगा,
और फिर कोई भगत भी इन ज़न्ज्जीरों को काट ना पायेगा.

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

awajein

राह में चलते एक पल दो पल,
जो टहरता हूँ,
जरा रूक हरतरफ से आती हुई ,
आवाजों को जरा सुनता हूँ,
तोह दिल  सहमता हे,
समाज के असली परिदृश्य का पता चलता हे ,
वैसे इन अनगिनत आवाजों में कुछ एक ही में समझ पता हूँ,
क्या कहती हे यह आवाजे याद रखने को लिखे जाता हूँ,


हाथ पसारे म्ट्मेलें कपड़ों में,
कहीं करहाता बचपन बिलखता हे,
हर जाते राही को बड़ी आस से तकता हे,


कभी सुनता हूँ  आवाज़ बुढ़ापे की,
एक आवाज़ अपनों से ठुकराई जाने की,
कभी एक चीत्कार कानो से टकराती हे,
व्यथित ह्रदय को और बेचेन बनाती हे,
यह आवाज़ हे उस नारी की,
जो भेडियो के बिच फँसी चिलाती हे,
इस बहरे समाज को कुछ सुनाना चाहती हे,


ना जाने कब यह समाज उठ पायेगा ,
ना जाने कब समाज के ठेकेदारों को समझ यह आयेगा,
जल्द ही ना किया कुछ तोह मानवता का पतन हो जाएगा,

जो बदलना हे कुछ तोह साथ चलना होगा,
हर आती आवाज़ को बुलंद करना होगा,
जब मिल यह सारी आवाजें जाएँगे तोह समाज में एक नयी क्रांति आयेगी,
पर ना जाने कब वोह समय आयेगा ,
तब तक में यूँही सर जुखाए हर आवाज़ को सुनता जाऊंगा.