इतवार का खौफ
एक जमाना हुआ करता था
,
हमें भी इतवार का शौक
हुआ करता था ,
बचपन में स्कूल न
जाने की मौज हुआ करती थी ,
कॉलेज में भी दोस्तों
के साथ घुमने की धूम हुआ करती थी,
फिर दिन बदले वक्त
बदला,
अब तोह इतवार आते ही घबराता
हे दिल,
हर दरवाजे पे आती दस्तख
से दर जाता हे दिल,
कभी जहाँ इंतजार करता
था किसी के आने का,
अब दर लगता हे किसी
के अजाने का,
कोई आयेगा तोह a/c
पंखा चलाना होगा,
चाय बनाने को चूल्हा
भी जलाना होगा,
और कहीं कोई रुक
जाएगा खाने तक,
तोह चूल्हा और चलता
जायेगा,
और हृदय पर दाल दलता
जायेगा,
कहीं आलू कटेगा तोह
दिल फुट फुट रोयेगा,
हर सिकती चपाती के
साथ दिल धीरज खोएगा,
जो चलाना था हफ्ते भर
वोह राशन एक दिन में खत्म होजायेगा,
जोह सालाद में काट दी
प्याज दो,
तोह सब्र का बाँध टूट
जायेगा,
और इस कवी ह्रदय में छुपा
राक्षस जाग जायेगा,
बची रहे देश में
मेहमान नवाजी की रित,
बनी रहे हर आने वाले
के लिए हमारे प्रीत,
तोह यह महंगाई के
राक्षस से हर आदमी को बचाना होगा,
सरकार को ठोस कदम कोई
उठाना होगा,
खुद खाते हैं जो रोज
माल पूरी,
26 रूपये में नहीं
भरता किसी का पेट यह समझाना होगा,