शुक्रवार, 10 मार्च 2017

नेता और सामाजिक जिम्मेदारी

हर राष्ट्र और समाज के निर्माण की नीव कुछ मुलभुत स्तंभों पे खडी होती हे . उन्ही स्तंभों में से एक होता हे , राष्ट्र के नेता जिनपर एक बहुत बड़ी सामाजिक जिम्मेदारी होती हे राष्ट्र का और समाज का निर्माण करने की जिम्मेदारी . नेता अपने सामाजिक जीवन में जो करते हैं जो कहते हैं उसका प्रभाव देश पे देश के सामाजिक वातावरण पे गहरा प्रभाव होता हे . और आधुनिक युग में जहाँ इन्टरनेट और सोशल मीडिया का प्रभाव बहुत ज्यादा हो चूका हे , वहां तो यह जिम्मेदारी और भी बड़ी हो जाती हे .परन्तु कुछ वर्षों में जिस प्रकार का राजनितिक माहोल देश में बना हे वोह एक चिंता का विषय हे .
आज कोई भी जननायक अगर कुछ बोलता हे तोह पहले की तरह उससे जनता तक पहुँचने में वक़्त नहीं लगता आज आपका हर व्यक्तव्य सोशल मीडिया के माध्यम से तुरंत जनता में पहुँचता हे और जब हम सोशल मीडिया की बात करते हैं तो इसका एक बड़ा तबका बनता हे आज के युवा का , जहाँ एक और ये अपने आप में देश के लिए लाभप्रद हे के उसका युवा राजनीती में दिलचस्पी ले वहीं दूसरी और ऐसे समय में राजनेताओं पर जिम्मेदारी और भी अधिक हो जाती हे के वोह जो भी भाषा अपने भाषणों या सामाजिक बहस में प्रयोग करते हैं , उसमें शब्दों का और व्यक्तव्य का प्रयोग बहुत सोच समझ कर करना होगा क्यूंकि आपकी कही हुए कोई भी बात एक आग की तरह फेलती जायेगी . अधिकांश रूप से इसका दुर्प्रभाव छोटे शहरों में होता हे , जहाँ की जनता अपने नेता से जमीनी रूप से जुडी रहती हे. ऐसे में एक भी गलत सन्देश सामाजिक तानेबाने और सोहार्द की भावना को छीन भीन कर सकता हे और जिसकी शतिपुर्ती होने में या तो सालों लग जायेंगे या फिर संभवत हो ही न पाए .

आज के राजनीतिक माहोल में जल्द से जल्द बड़ा बनने की होड़ में अक्सर ऐसी भाषा का प्रयोग खूब हो रहा हे , परन्तु इसके दूरगामी परिणामों पे भी विचार करने की जरुरत हे. जब यह समाज ही नहीं रहेगा या हालात हमेशा ही बेकाबू रहेंगे तोह किसकी राजनीती चलेगी . राजनितिक पार्टिओं को भी इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए के उनके वक्ता किस प्रकार की भाषा का प्रयोग कर रहे हैं . केवल निन्दा करने से काम नहीं होगा, कारवाही भी होनी चाहिए वरना वोटों की राजनीती में हम एक ऐसा समाज बनादेंगे जो हमेशा बारूद के ढेर पे बेठा सुलगता रहेगा एक चिंगारी के इन्तेजार में.

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