रविवार, 26 अप्रैल 2015

Hariyali

सुख गयी जो कोमल कलियाँ ,
चलो फिर उनको सींच जगाये,
 चलो चलें हरियाली लायें,
ज्जड गयी जो हरियल क्यारी ,
आओ उसको फिर एक बार सजाएं ,
चलो चलें हरियाली लायें ,
कृषक के ह्रदय पर पड़ी हे छाया काली,
जिसने गेहूं धान के भरे भंडार ,
उसके घर पर छाने लगी मातम की लाली,
शत विशत हुए मनु पाठ पर ,
गिरी हुए खेत की मरू लाश पर ,
खेल रहे जो सत्ता का खेला ,
अपने अपने ढंग से रंगमच पर आ जाते है
सूद के बोज से भोजिल अखियों को नया स्वपन दिखलाते हैं ,
पर ना जाने फिर कैसे यह सपने बेरंग से रह जाते हैं ,
इन आँखों को अब स्वप्न नहीं ,
असली परिवेश दिखाना हे ,
जो देश की भूख मिटाता हे उसको खोया विश्वास दिलाना हे,
जो धरा चीर धन लाते हैं,
उनका महत्व दिखलाना हे,
हलधर हाथ जो रुक जायेंगे ,
तोह अन्न कहाँ से लायोगे ,
देश को इन हाथों को बचाना होगा,
हरियाली को बोने वालों को अपने साथ चलाना होगा,
तभी मरू धरा पर कोमल क्यारियां उग पाएंगी,
तभी लहलहाती हरयाली धरती पर फेलती जाएगी,
चलो एक हरित क्रांति लायें,
चलो चले हरयाली लायें,

चलो चलो चले हरयाली लायें

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